कॉमरेड महेंद्र सिंह एक विचार है। एक ऐसा विचार जो हर तबके को शान से जीने को
सिखाता है। जिनका मौत भी कुछ बिगाड़ नही पाया, उनको मिटाने की कोशिश से हत्या कर दी गयी। लेकिन एक मिजाज
के रूप में हर आंदोलन, नारों, कहानियों में वे जीवित महसूस होते हैं।
साहसी योद्धा के शहादत दिवस पर हर गाँव-कस्बे में चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता
है। किसान खलिहानों में काम करते हुए उनके यादगार पलों को अन्य के साझा करते हुए
नजर आ जाएंगे। शायद ही कोई ऐसा गाँव हो, जहाँ महेंद्र सिंह के साथी नहीं हों। हर चौक, चौराहे, नुक्कड़ में साहसिक कहानियों और पराक्रमी योद्धा की वीर
गाथाएं सुनने को मिल जाएगी।
गाँव की दीवारें लिखे फौलादी नारों और चारों ओर लहराते
लाल झंडे इस बात का प्रतीक होती है कि कॉमरेड तुम जिंदा हो। 16 जनवरी को लोग नई ऊर्जा के साथ, चारों तरफ ग्राम सभाएं करते, मशाल जुलूस आदि के बाद अपने जननायक को याद करने के लिए बगोदर जाते हैं।
बाकी पार्टियों से बिल्कुल भिन्न शहीद महेंद्र सिंह की शहादत को उसी परम्परा
के साथ जाने के लिए खुद साधन की व्यव्यस्था कर लोग जाते हैं। तैयारीयों का बाजार
गर्म है, फिर से एक नई चुनौती होगी, नए निर्णय होंगे।
हजारों कसी हुई मुठ्ठी और धधकते दिलों में संकल्प लेकर सत्ता से टकराने और
आंदोलनों की धार से क्रांति के काफिले के साथ परिवर्तन की लहर के साथ आगे को
संकल्पित होंगे। कॉम. महेंद्र सिंह की ही कविता में –
कल जब हम नही होंगे
जिंदगी की हर ख़ुशी और मातम में
जिंदा रहेंगी हमारी गूंज
अनुगूँज बनकर